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Naqaab-Are you restricted to wearing a Naqaab ? क्या नक़ाब पहनना बंदिश हैं

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Naqaab-क्या नक़ाब पहनना बंदिश हैं-तरक्की बहुत ही व्यापक शब्द हैं इसका कोई एक ही निश्चित मतलब नहीं हैं. मुस्लमान एक ज़माने में बंगाल की खाड़ी से ले कर अटलांटिक तक शासक रहे हैं. साइंस और दर्शन में वे दुनिया के उस्ताद रहे हैं .संस्कृति और सभ्यता में कोई दूसरी कौम उनके बराबर न थी.

तरक्की अगर किसी शब्द कोष में कही अगर लिखी हुई हैं तो मैं ये कहना चाहता हूँ कि क्या 1400 साल में मुस्लिम समाज में तरक्की नहीं हुई थी.दुनिया के बहुत से देशो में मुस्लमान रहते हैं और अगर मुस्लमान के अलावा,आप अगर गैर मुस्लिमो को देखेंगे तो सभी सभयता ने तरक्की की हैं, लेकिन एक हिजाब पहने लड़की और एक बिना हिजाब पहने लड़की के लिए नजरिये दोनों अलग अलग रहते हैं.

Naqaab-Are you restricted to wearing a Naqaab ? क्या नक़ाब पहनना बंदिश हैं

आप पूरी दुनिया के इतिहास को उठा कर देख लीजिये, इस्लाम के रास्ते पर चलने वाले लोगों के पास, औरो के मुकाबले कही ज्यादा तरक्की की हैं. इस्लामी इतिहास बड़े बड़े वालियों,शासको,आलिमो,राजनीतिज्ञों,लेखकों,और सफल होने वाले मुसलमानो के नामो से भरा पढ़ा हैं.ये महान लोग किसी जाहिल माँओ की गोदो में पालकर तो नहीं निकले हैं, कहीं न कही इन लोगो की तरबियत इस्लामी ज्ञान और कानून के हिसाब से हुई होगी.तो क्या तब हिजाब या परदे का हुक्म नहीं था क्या ?

इस्लाम के इतिहास में बहुत बड़ी बड़ी आलिम और फ़ाज़िल औरतों के नाम मिलते हैं. वे इल्म के साथ साथ साहित्य में भी महारत रखती थी. इस्लाम में औरतों के लिए जो हुक्म बताया गया हैं, उन पर ही अमल करके ही तरक्की की थी और इस्लाम आज भी इसी अंदाज में कोई औरत तरक्की करना चाहे तो न इस्लाम और न ही पर्दा उसे तरक्की करने से रोकता हैं.

Naqaab-Are you restricted to wearing a Naqaab ? क्या नक़ाब पहनना बंदिश हैं

यहाँ बहुत से लोगो के अंदर ये ख्याल आ रहा होगा की परदे के साथ वो तरक्की यकीन नहीं हो सकती हैं, जो बाकी गैर मुस्लिम समाज में होता हैं. मगर हर मुस्लमान को ये भी सोचना चाहिए की ये तरक्की जो गैर मुस्लिमो ने हासिल की हैं ,वो अख़लाक़ और खानदानी व्यवस्था को खतरे में डाल कर की हैं, वो औरतों को उसके कार्य क्षेत्र से निकालकर मर्दों के कार्य क्षेत्र में ले आया हैं.

तरक्की के लिए उसके हाथ तो बढ़ गए,लेकिन उस समाज ने अपने लिए और घर के लिए वह सकून खो दिया जो उसको हमेशा से चाहिए था. आज घर सिर्फ देखने के लिए आबाद दिखते हैं लेकिन अंदर से सब खोखला हो चूका होता हैं,तलाक़,लड़ाई झगड़े,बच्चो से सही से तरबियत न होना ये बस छोटा सा उदहारण हैं .

मुस्लमान कौम में औरते हो या मर्द सबने इस दुनिया को ही सब कुछ मान लिया हैं ,लेकिन असल दुनिया से वो कोसों दूर हैं,हमे खुदा की बनायीं जन्नत नहीं चाहिए ,हम सबको तो बस यही दुनिया जन्नत लगने लगी हैं .यकीन मानिये अगर आप ऐसा सोचते हैं तो इस्लाम में होने बाद भी मुस्लमान नहीं हैं.

अल्लाह तआला खुद फ़रमाया हैं की क़ुरान को समझ कर पढ़ो क्युकी क़ुरान जिसने सही से समझ लिया उसकी ये दुनिया भी संवर जाएगी और आख़िरत के बाद की भी दुनिया आसान हो जाएगी.

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