Maut ki Yaad (मौत की याद)-दुनिया में लोगो ने बहुत से चीज़ो का इंकार किया हैं यहाँ तक कि कुछ ने खुदा तक का भी इंकार कर दिया हैं.लेकिन Maut दुनिया की एक ऐसी हकीकत हैं,जिसका इंकार आज तक कोई नहीं कर पाया हैं. इंसान रोजाना अपने आँखों से देखता हैं,और वह बेबस और मजबूर होता हैं.
एक इंसान Maut का आगोश में जा रहा होता हैं,हर एक अफ़सोस के साथ वह उसे देखता हैं पर वह किसी की Maut को रोक नहीं पता हैं.Maut ki Yaad (मौत की याद)सांस उखड़ते ही मरने वाले की आंखे बंद कर दी जाती हैं,और हाथ पैर सीधे कर दिए जाते हैं,और कभी कभी तो कुछ इंसान इतने बदनसीब होते हैं,जिनको इतना सब करने का भी मौका नहीं मिलता हैं.
Maut ki Yaad (मौत की याद)-एक बार इसको जरूर पढ़े कभी मौत से डर नहीं लगेगा
दुनिया की कोई ताक़त अब तक नहीं बनी हैं जो किसी को Maut के बाद से निकाल लाये Maut के साथ दुनिया की तमाम लज्जते ख़तम हो जाती हैं. इंसान बेबसी की हालत में दुनिया छोड़ता हैं. Maut ऐसा शब्द हैं जिससे इंसान सहम जाते हैं Maut की इस दरवाजे से दुनिया के हर एक मख्लूक़ को गुजरना होता हैं.क़ुरआन कहता हैं…..
कुल्लु नफ़सिन ज़ायकतूल मौत हर नफ़्स को मौत का मज़ा चखना हैं.
इंसान की कामयाबी इसी में हैं कि वह अपनी और Maut की हक़ीक़त की समझे और जिंदगी में एक मोहलत जाने और अल्लाह और उसके
रसूल के अहकाम के मुताबिक नेकी और भलाई को अंजाम दे.और गलत काम और बुराई से दूर रहे. इस दुनिया के बाद आने वाली हमेशा की जिंदगी में कामयाबी हासिल करने की जिद्दोजहद करे. Maut डरने की चीज़ नहीं हैं वो तो आनी ही हैं,अलबत्ता Maut ki Yaad (मौत की याद) याद रखना जरुरी हैं.
नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया
Maut ki Yaad
लज़्ज़तों को ख़तम करने वाली चीज़ को बहुत ज्यादा याद करो,जो मौत को याद करेगा वो दुनिया की लज़्ज़तों और रंगरलियों से दूर रहेगा. और दुनिया पर इस तरह से जान नहीं छिड़केगा की उसको हासिल करने के लिए तमाम भलाइयां छोड़ दे.कुरआन और हदीस में मौत से डरने की बात कही भी नहीं कही गयी हैं अलबत्ता Maut ki Yaad (मौत की याद) याद रखने की नसीहत बार बार की गयी हैं.
कुरआन में हैं
कोई जानदार अल्लाह के हुक्म के बगैर नहीं मर सकता हैं,मौत का वक़्त तो पहले से तय हैं.
बेफिक्री के साथ अल्लाह को भूल कर जब इंसान जिंदगी गुजरता हैं तो नफ़्सानी ख़्वाहिशात,यौन पथ भृष्टा,बदअख़लाक़ी जैसी ख़राबियाँ जिंदगी में दाखिल हो जाती हैं,और वह इनसे बचने में नाक़ाम हो जाता हैं.मौत के बाद आने वाली जिंदगी की याददिहानी बहुत जरुरी हैं.आम तौर से इंसान के जेहन में यह बात नहीं आती की मौत के बाद क्या होगा ?
यही वह पहलू हैं,जहाँ हर नबी के साथ हमारे प्यार नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ताक़ीद से यह बताया हैं,की इस जिंदगी के बाद मौत के दरवाजे से गुजर कर आख़िरत में पूरी जिंदगी का हिसाब देना होगा और यह भी साफ़ हैं की आलमे आख़िरत के आने से पहले एक और आलम हैं जिसे अलामे बरज़ख़ (कब्र) कहा जाता हैं,इस आलम में कितने मुद्ददत का इंतजार हैं इस अल्लाह के सिवा किसी को नहीं पता हैं.
इस आलमे बरज़ख़ में हर वह व्यक्ति पहुंच जाता हैं,जिसे मरने के बाद चाहे जला दिया जाये या समुद्र में डुबो दिया जाये,आलमे बरज़ख़ में उसके साथ कोई नहीं होगा सिर्फ अगर उसके पास कुछ होगा तो वह होगा उसका ईमान .अगर उस इंसान ईमान बेहतरीन होगा तो ये अलामे बरज़ख़ (कब्र) की जगह इस दुनिया से भी अच्छी जगह साबित होगी और वह इंसान बिना ईमान के साथ उस अलामे बरज़ख़ (कब्र) में होगा तो अलाम दुनिया के बदतरीन जगह से भी ज्यादा ख़राब होगा.
इस लिए हमेशा ईमान के रस्ते पर चलने वाले लोग कभी भी मौत से नहीं डरते हैं.बल्कि वह तो उस समय का इंतजार करते हैं,जब वह इस दुनिया से भी और ज्यादा हसीं दुनिया में होंगे जहाँ सिर्फ अल्लाह की नेमत होगी और पुर सकून होगा.
अल्लाह तआला हम सब के ईमान को और अच्छा से अच्छा करने की दुआ को कबूल अता फरमाए.
आमीन.