Islam Deen Ki Buniyad Kya Hai ? इस्लाम की बुनियाद पांच बातो पर आधारित हैं.यही पांच बाते इस्लाम में पहले पायदान पर आती हैं.किसी भी इंसान को अपने दीन की जानकारी होना बहुत जरुरी होता हैं, और इस्लाम में दीन की शिक्षा उसकी 5 बुनियाद से शुरू हो जाती हैं.इस्लाम दीन की 5 बुनियाद इस तरह से हैं.
इस्लाम हमे बताता हैं की खुदा एक हैं और वो निराकार हैं.एक अल्लाह के अल्लाह कोई भी इबादत के लायक नहीं हैं. इस्लाम हमे बताता हैं की खुदा को किसी रूप में मान कर उसकी इबादत करना सबसे बड़ा गुनाह हैं .
Islam Deen Ki Buniyad Kya Hai ? इस्लाम दीन की बुनियाद किस पर आधारित हैं ?
क़ुरान में अल्लाह तआला ने फ़रमाया हैं की कोई इंसान जिसके गुनाह की कोई सीमा नहीं हैं,लेकिन अगर उसने एक अल्लाह का कलमा पढ़ा हैं और उस पर ही यकीन रखा हैं तो उसके सारे गुनाह अल्लाह माफ़ कर सकता हैं ,पर कोई ऐसा शख्स जो ऊपर से ले कर नीचे तक कभी गुनाह के बारे में सोचा तक नहीं लेकिन उसने मुस्लमान होने के बावजूद अल्लाह का कोई रूप मान कर उसने इबादत की हो उस पर उसकी कोई माफ़ी न होगी. अल्लाह सारे गुनाह माफ़ कर देगा पर अल्लाह का किसी रूप मान कर इबादत करने को कभी वह माफ़ नहीं कर सकता हैं.
नमाज़
इस्लाम की दूसरी बुनियाद नमाज़ हैं,जो अल्लाह की तरफ से मुसलमानो के लिए एक ऐसा तोहफा हैं.जिससे उसके सारे गुनाह माफ़ हो सकते हैं. वह अपनी जिंदगी में एक आदर्श बन कर रह सकता हैं. उसके ऊपर अल्लाह की नेमत हमेशा बनी रही हैं.हर एक मुस्लमान के लिए 5 वक़्त
अल्लाह की इबादत करने का हुक्म हैं,और इसी इबादत करने के तरीके को नमाज़ कहा जाता हैं.
रोज़ा
अल्लाह की एक खूबसूरत इबादत जिससे अल्लाह बहुत पसंद करता हैं,वह हैं रोज़ा.इस्लामिक कैलेंडर में रमजान का महीना हैं इसी रमजान के महीने में अल्लाह का कलाम हम उम्मतियों के लिए हमारे नबी मोहम्मद सल्ल के जरिये आया, इस लिए ये रमजान का महीना बहुत ही पाक महीना होता हैं .इसमें लोग सूरज उगने से पहले से ले कर सूरज डूबने के बाद ही कुछ खाते हैं इसे ही रोज़ा कहा जाता हैं .रोज़ा रमजान महीने के अलावा भी आप कभी भी रख सकते हैं.हमेशा ये याद रखिये रोज़ा भूखा रहने का नाम नहीं हैं बल्कि उस भूख की शिद्दत को पहचानने के साथ साथ लोगो की मदद और भलाई के रास्ते पर चलनेका नाम रोज़ा हैं.
ज़कात
आप जो कुछ भी कमाते हैं उसका कुछ हिस्सा अगर आप दान करते हैं तो इसी को जकात कहा गया हैं. किसी भी मुस्लमान के लिए ये जरुरी नहीं हैं की वह रोज़ और हर महीने दान करे, पर साल में एक वक़्त ऐसा जरूर आता हैं जब अल्लाह ने ये कहा हैं की साल भर की कमाई में से कुछ हिस्सा दान के रूप में देना हर मुस्लमान के लिए फ़र्ज़ हैं और वह दिन होता हैं ईद उल फ़ित्र की नमाज़ का दिन. उस दिन नमाज़ से पहले हर एक मुस्लमान जो कुछ भी कमाता हैं वह इस्लामी शरिया के हिसाब से जितना भी दान तय किया गया होता हैं,उसको दिए बैगर उसकी ईद की नमाज़ क़बूल नहीं होगी. इस लिए जकात इस्लाम की पांच बुनियादो में से एक हैं.
हज
हज को आप एक तीर्थ यात्रा के रूप में भी समझ सकते हैं,जो हमारे नबी मोहम्मद सल्ल ने भी अदा की हैं.अल्लाह के हुक्म से मक्का शरीफ से आप मदीना शरीफ के लिए गए तो इस यात्रा को अल्लाह ने हज करार दिया और हर मुस्लमान के लिए हज करने की ताक़ीद की. इस यात्रा में हर मुस्लमान बिना रंग भेद के ,न अमीरी गरीबी के भाव ,से काबा शरीफ में अपने अल्लाह की रज़ा के लिए हाज़िर हो जाता हैं .लाखो की संख्या में मुस्लमान हज के लिए आते हैं.सबकी आँखों से आंसू बह रहे होते हैं,और सबकी जुबान पर अपने लिए माफ़ी की दरकार खुदा से होती हैं.